यादों के साथ गुजरता समय अभी तीन महीने ही सरक सका है. तुम हर समय आँखों के सामने रहते हो, ऐसा लगता ही नहीं कि तुम कहीं दूर चले गए हो. इसके बाद भी तुम्हारा खालीपन स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है. न तुम्हारी शैतानियाँ, न तुम्हारा बच्चों को चिढ़ाना, न तुम्हारा बेवकूफी भरी हरकतें करना दिखाई पड़ता है. तुमको डांट भी नहीं पाते क्योंकि अब तुम सामने होते हुए भी सामने नहीं हो.
खैर, क्या कहें और क्या न कहें. बस सब कुछ यादों में ही बसा-सिमटा हुआ है. तुम खुश रहो, प्रसन्न रहो, जहाँ भी रहो.
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