पहली पुण्यतिथि पर तुम्हारे साथ






आज, दिनांक 16 जनवरी 2022 को उज्जैन में. रश्मि, टिंकू, पिंटू, विक्रम पहली पुण्यतिथि पर. 
 

रुक गया वो पल और तुम भी


14 जनवरी को आना ही था, इसे न तो इस बार रोका जा सकता था और न ही पिछले साल रोका जा सका. समय को रोकना अपने हाथ में होता तो शायद समय आगे ही बढ़ पाता. कई बार समय का बढ़ना सुखद लगता है मगर बहुत बार समय का रुक जाने की कल्पना करना सुखद एहसास देता है. समय भले ही न रुकें मगर बहुत से पल होते हैं जो अपनी जगह रुके रह जाते हैं. समय के साथ सबकुछ आगे बढ़ता रहता है, बस वे पल ही आगे नहीं बढ़ते हैं. ऐसे ही बहुत सारे पलों में तुम भी शामिल हो गए हो. अब समय तो पिछले साल से यात्रा करते हुए आज की तारीख तक आ पहुँचा है मगर तुम अभी भी उसी पल के साथ रुके हुए हो. लाख कोशिशों के बाद भी तुमको उस पल से एक पल आगे न ला सके.


अब समय चल रहा है, हम सब चल रहे हैं, सबकुछ बढ़ रहा है, सबके साथ गति है बस तुम नहीं हो. तुम उसी एक पल के साथ रुक गए हो. हम अपने साथ तुमको लेकर चल तो रहे हैं मगर तुम न चल रहे हो. अब तुम्हारी यादें साथ चलती हैं, तुम्हारी बातें साथ चलती हैं, तुम्हारी शरारतें साथ चलती हैं. कितना कठिन हो जाता है तुम्हारे बिना एक कदम आगे बढ़ाना. दिल-दिमाग में सनसनाहट होती रहती है यही विचार करके कि चारों तरफ सबकुछ है बस तुम नहीं हो.


खैर, ये कौन सी इस एक दिन अकेले की कहानी है, ये कौन सा इसी एक जनवरी का हाल है, ऐसा पिछले साल भर से रोज हो रहा है, हर पल में हो रहा है. लोग कहते हैं कि समय हर तरह के घावों को भर देता है मगर हमें लगता है कि कुछ घाव समय के साथ भी नहीं भरते. ये एक दर्द है, एक घाव है जो आजीवन साथ रहेगा, ताउम्र साथ चलेगा. हर पल में दर्द देगा, हर बात पर आँसू लाएगा. इसके बाद भी जीवन इसी के साथ चलेगा, तुम्हारे बिना तुमको साथ लेकर चलेगा.


ढेरों आशीर्वाद, जहाँ रहो सुखी रहो, खुश रहो.

एक बार फिर आकर पूछ लो कि स्कूटर धो दें?

आज विजयादशमी का पर्व सभी लोग बहुत ही धूमधाम से मना रहे हैं. सुबह से किसी ने आकर एक बार भी नहीं कहा कि भाई जी कहीं जाना तो नहीं है? स्कूटर धो दें?


कौन कहता? यही सोचते जब ख्याल आता और अब भी यही सवाल खुद से कर रहे हैं. सही तो है, कौन कहता ये बात? कौन आकर कहता कि स्कूटर धो दें?


तुम्हारा दशहरे पर आना पिछले दो-चार साल में कम ही हुआ है मगर दीपावली पर आना होता रहा. हर त्यौहार पर (दीपावली, दशहरा पर) हमारा स्कूटर धोना जैसे तुम्हारा ही काम बना हुआ था. हमने दो-चार बार तुमको टोका भी कि तुम अपने काम कर लो, हम धो लेंगे मगर यह काम तुमने अपने जिम्मे ही ले रखा था.


पिछली बार तुम्हारा सुबह से कई बार स्कूटर धोने की बात करना और फिर किसी न किसी काम में हमारे या तुम्हारे लग जाने के कारण यह काम टलता रहा. इस बात का बाद में हम सबने खूब मजाक बनाया. इस बार न कोई पूछने वाला था, न कोई मजाक बनाने जैसी स्थिति थी.


इस बार आसपास बस ख़ामोशी थी. व्याकुलता थी. हँसते चेहरे-आँखों के पीछे आँसू थे. बस एक तुम न थे. आज सबकुछ शांत-शांत बना रहा. आज स्कूटर ऐसे ही खड़ा रहा, बिना धुले. दिल-दिमाग जानते थे तुम्हारा न आना मगर खुद को धोखा देते यही सुनना चाहते थे कि भाई जी कहीं जाना तो नहीं है? स्कूटर धो दें?


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पिन पेट में खो जाना समस्या नहीं

आज कॉलेज में बैठे हुए चुटकुलों के सम्बन्ध में बातें चल रही थीं. उसी समय किसी ने कहा कि ये चुटकुले बन कैसे जाते हैं? इस पर सबके अपने-अपने तर्क आये. हमने भी अपनी बात रखी. हमारा कहना था कि चुटकुले व्यक्ति के जीवन से ही बनते-निकलते हैं. हम सभी रोजमर्रा में, अपने दैनिक जीवन में बहुत सी घटनाओं से दो-चार होते हैं, बहुत सी बातें करते हैं उन्हीं में से यदि गौर करें तो चुटकुले निकल आते हैं.


इस सम्बन्ध में मिंटू के बचपन की एक घटना उन सबको सुनाई. ऐसी एक-दो नहीं वरन ढेरों ऐसी घटनाएँ हैं, बातें हैं जो किसी भी रूप में चुटकुलों से कम नहीं.


पिंटू एक पिन को बार-बार अपने मुँह में डाल रहे थे. दाँतों में डालते, कभी इधर-उधर करते. उनको ऐसा करते देख किसी ने टोका कि ऐसा न करो. यदि पिन पेट में चली गई धोखे से तो दिक्कत हो जाएगी.

इससे पहले कि कोई कुछ बोलता, बताता तुम बोले कि कोई दिक्कत नहीं होगी. पिताजी के पास डिब्बा भर कर रखी हुई हैं पिन. दूसरी काम में आ जाएगी.


उस समय भी सब खूब हँसे थे और हम सब आज भी जब उस घटना को, उस बात को याद करते हैं तो हँस लेते हैं. उस समय मिंटू को इसका भान नहीं था कि यदि लोहे की पिन पेट में चली जाएगी तो क्या समस्या हो सकती है. उसके लिए तो बस पेट में पिन के जाने का मतलब पिन का खो जाना था. सो उसका समाधान मिंटू के बालमन ने कर दिया कि पिताजी के पास डिब्बा भर कर पिन रखी हुई हैं.


तुम्हारे पास आना बिना तुम्हारे

 एक सफर सात साल के अंतराल वाला मगर अधूरा-अधूरा। 2014 का आरम्भ था वो जब ग्वालियर आना हुआ था तुम लोगों के पास, अब 2021 का मध्य है जब इंदौर आना हो रहा तुम लोगों के पास। उस समय खुशी थी, उत्साह था आने का और इस बार उदासी है, खालीपन है। इस बार सब हैं बस एक तुम नहीं हो। बिना तुम्हारे, तुम्हारे पास आना उदास भी किए है, दुखी भी किए है। 

सब समय है, यही सोचकर चलना है, आगे बढ़ना है। तुम्हारे बिन ही तुम्हारे साथ रहना है। 

मिंटू, अब तुम्हारे बिन ही तुम्हारे पास आना हुआ करेगा।

पहली पुण्यतिथि पर तुम्हारे साथ

आज, दिनांक 16 जनवरी 2022 को उज्जैन में. रश्मि, टिंकू, पिंटू, विक्रम पहली पुण्यतिथि पर.