जीवन की हर वो ख़ुशी तुमको मिले जो हम लोग नहीं दे पाए

आज पूरे दो महीने हो गए बिना तुम्हारे. ज़िन्दगी तुम्हारे साथ भी चल रही थी, अब तुम्हारे बिना भी चल रही है. दोनों का अंतर अब साफ़ समझ आ रहा है. अब एक पल को भी तुम दिल-दिमाग से दूर नहीं हो पा रहे हो. समझ नहीं आ रहा कि आगे का समय कैसे बिताया जा सकेगा. तुम्हारी फोटो देखकर, तुम्हारी बातों को याद करके मन को बहलाने की कोशिश करते हैं, खुद को झूठा दिलासा देने का काम करते हैं कि तुम प्रत्यक्ष साथ न होकर भी साथ हो. इस झूठे विश्वास के साथ हर पल को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हैं कि तुम उस अगले पल में हमारे साथ ही रहोगे.




अक्सर लोग मिलते हैं, बात भूलने को कहते हैं, आगे बढ़ने को कहते हैं समझ नहीं आता कि क्या भूलने और कैसे भूलें? बचपन के दिन जो तुम्हारे साथ बिताये क्या उनको भूल जाएँ? बड़े भाई होने के बाद भी हमने खुद को तुम्हारे लिए एक अभिभावक का स्वरूप स्वतः बना रखा था क्या उसे भूल जाएँ? तुम्हारे दूर रहने के बाद भी तुम्हारे भविष्य के लिए चिंतित रहने की बात भूल जाएँ? तुम्हारे बड़े होते जाने के बाद भी बचपना बना रहना भूल जाएँ? भूल पाना कुछ भी संभव नहीं, हाँ आगे बढ़ना हो रहा है. इतना बड़ा घाव एक पल में, एक महीने में, एक साल में नहीं भरने वाला. या कहें कि यह ऐसा घाव है जो कभी नहीं भरेगा. देह पर एक कष्ट लिए चलते-चलते मन पर, दिल पर एक और कष्ट लेकर आगे चलना है.


समय ऐसे ही बीतेगा. आज दो महीने बीते, कल को दो साल गुजरेंगे फिर कई और साल गुजर जायेंगे. ये कष्ट कभी कम न होगा, कभी न भरेगा. रोते-रोते हँसना होगा, हँसते-हँसते रोना होगा. तुम खुश रहना, जहाँ भी रहना. जीवन की हर वो ख़ुशी तुमको मिले जो हम लोग तुमको इस जीवन में नहीं दे पाए थे. तुम्हारी हर वो कमी पूरी हो जो इस जीवन में रह गई. इतना सा आशीर्वाद है, तुम्हारे बड़े भाई जी का.

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