तुम्हारी याद के संग होली

 इस बार की होली जितनी ख़ामोशी से बीत गई उतनी खामोश पहले कभी नहीं निकली थी. यद्यपि इससे पहले भी ऐसे हादसों से परिवार गुजरता रहा मगर होली पर एक तरह की औपचारिकता होती ही रही. अपने लोगों के जाने का दुःख बराबर बना रहा, एक बार अइया के जाने के बाद होली का आना हुआ था और दूसरी बार पिताजी के जाने के चंद दिनों बाद ही होली आई थी मगर उन दोनों ही अवसरों पर मन, दिल इतना भारी नहीं था जितना इस बार था. इस बार परिवार ने अपने युवा सदस्य को खो दिया था, ऐसे में पल-पल बस उसकी ही याद आँखों को नम करती रही.


वे तमाम होली के दिन याद आते रहे जबकि खूब जमकर मस्ती, धमाल हुआ करता था. हम सभी भाई-बहिन, चाचा-चाची लोग इकट्ठे हुआ करते थे. ऐसा शायद ही किसी बार हुआ होगा कि होली उसी दिन से खेलना शुरू हुआ जिस दिन रंग की होली हो. ज्यादातर होली का हंगामा उसी रात से शुरू हो जाता था जबकि होलिका-दहन कार्यक्रम संपन्न होता था. हंगामा क्या जबरदस्त हुल्लड़ हुआ करता था. रात से शुरू हुल्लड़ दिन-रात चलता रहता. सोने के बाद भी किसी को न छोड़ना, किसी की मूँछ बना देना, किसी के बालों में सूखा रंग भर देना, ब्रश से रंगने की वो कला आदि न जाने क्या-क्या चलता रहता.


इस बार होली निपट खाली-खाली बीत गई. बच्चों ने ही अपनी-अपनी पिचकारियों से सबको रंग लगाने का काम किया. घर के बड़े सदस्य तो आने-जाने वालों से भेंट-मुलाकात में व्यस्त बने रहे. उनके साथ कभी हँसते रहे, कभी रोते रहे. एक यही होली तुम्हारे बिना नहीं गुजरी है बल्कि अब आने वाले हर त्यौहार तुम्हारे बिना ऐसे ही खाली-खाली गुजरने हैं.


'हर रंग में तेरा रंग है

गुलशन रँगा तेरे रंग में,

हर हाथ, माथे जो सजा

वो गुलाल महका तेरे रंग में।'







(कुछ तस्वीरें बीते दिनों की)


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वंदेमातरम्

हमारे घर के सरजू-बब्बन

 


ये हैं हमारे घर के सरजू-बब्बन...

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नहीं समझे न? समझने के लिए उरई के उस दौर में जाना होगा जबकि शहर में सरजू-बब्बन (दो युवक) उत्पात काटे थे।
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हमारे इन दोनों छोटे भाइयों की जुगलबंदी कब क्या गुल खिला दे, कहा नहीं जा सकता था। इनकी शरारतें ऐसी गजब की कि उनका सामना करने वाला भी मुस्कुरा उठे।

दोनों संग निकलें तो तीस-तीस दही-बड़े एक लोग डकार जाएँ। गोलगप्पे वाला खिलाते-खिलाते थक जाए पर ये दोनों न थकें। एक बार तो एक गोलगप्पे वाले ने बाकी सबको मना करके इन दोनों को ही सेवाएँ प्रदान की। अंत में पता चला कि एक-एक ने साठ-सत्तर गोलगप्पे गटक लिए।
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ऐसी सैकड़ों शरारतें हैं जिनके चलते घरभर इनको सरजू-बब्बन बुलाने लगा। ऐसी ही हरकतों के लिए कुछ लोगों ने राहु-केतू नामकरण भी कर रखा था।

जीते रहो हमारे सरजू-बब्बन
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जीवन की हर वो ख़ुशी तुमको मिले जो हम लोग नहीं दे पाए

आज पूरे दो महीने हो गए बिना तुम्हारे. ज़िन्दगी तुम्हारे साथ भी चल रही थी, अब तुम्हारे बिना भी चल रही है. दोनों का अंतर अब साफ़ समझ आ रहा है. अब एक पल को भी तुम दिल-दिमाग से दूर नहीं हो पा रहे हो. समझ नहीं आ रहा कि आगे का समय कैसे बिताया जा सकेगा. तुम्हारी फोटो देखकर, तुम्हारी बातों को याद करके मन को बहलाने की कोशिश करते हैं, खुद को झूठा दिलासा देने का काम करते हैं कि तुम प्रत्यक्ष साथ न होकर भी साथ हो. इस झूठे विश्वास के साथ हर पल को पीछे छोड़कर आगे बढ़ते हैं कि तुम उस अगले पल में हमारे साथ ही रहोगे.




अक्सर लोग मिलते हैं, बात भूलने को कहते हैं, आगे बढ़ने को कहते हैं समझ नहीं आता कि क्या भूलने और कैसे भूलें? बचपन के दिन जो तुम्हारे साथ बिताये क्या उनको भूल जाएँ? बड़े भाई होने के बाद भी हमने खुद को तुम्हारे लिए एक अभिभावक का स्वरूप स्वतः बना रखा था क्या उसे भूल जाएँ? तुम्हारे दूर रहने के बाद भी तुम्हारे भविष्य के लिए चिंतित रहने की बात भूल जाएँ? तुम्हारे बड़े होते जाने के बाद भी बचपना बना रहना भूल जाएँ? भूल पाना कुछ भी संभव नहीं, हाँ आगे बढ़ना हो रहा है. इतना बड़ा घाव एक पल में, एक महीने में, एक साल में नहीं भरने वाला. या कहें कि यह ऐसा घाव है जो कभी नहीं भरेगा. देह पर एक कष्ट लिए चलते-चलते मन पर, दिल पर एक और कष्ट लेकर आगे चलना है.


समय ऐसे ही बीतेगा. आज दो महीने बीते, कल को दो साल गुजरेंगे फिर कई और साल गुजर जायेंगे. ये कष्ट कभी कम न होगा, कभी न भरेगा. रोते-रोते हँसना होगा, हँसते-हँसते रोना होगा. तुम खुश रहना, जहाँ भी रहना. जीवन की हर वो ख़ुशी तुमको मिले जो हम लोग तुमको इस जीवन में नहीं दे पाए थे. तुम्हारी हर वो कमी पूरी हो जो इस जीवन में रह गई. इतना सा आशीर्वाद है, तुम्हारे बड़े भाई जी का.

तुम्हारी स्मृतियाँ हर जगह हैं

क्या लिखें, क्या याद रखें, क्या भूलें कुछ भी अपने हाथ में नहीं, अपने वश में नहीं. चाहे भीड़ हो या फिर तन्हाई, घर में हों या फिर घर से बाहर, दिन हो या रात, सुबह हो या फिर शाम, जाग रहे हों या सो रहे हों तुम किसी भी एक पल के लिए स्मृतियों से ओझल नहीं हो सके हो. सबकुछ अपनी आँखों से देखने के बाद भी लगता है कि तुम अपनी शैतानियों के साथ प्रकट हो जाओगे. सड़कों पर टहलने के दौरान भी वे जगहें तुम्हारी उपस्थिति का झूठा आभास करवाती हैं जहाँ तुम कभी-कभी खड़े मिल जाते थे. घर का तो कोना-कोना तुम्हारी उपस्थिति की गवाही लगातार दे रहा है. इन सबके बाद भी तुम कहीं भी नहीं हो. मन को, दिल को समझाने की कितनी कठिन घड़ी है, इसे शायद तुम समझोगे नहीं.


तुम्हारी तरफ से ध्यान हटाने की कोशिश में हर बार वही चीजें सामने आती हैं जिनको लेकर तुम्हारा सम्बन्ध रहा है. तमाम सारे सामानों को एकबारगी भले ही छिपा दिया जाये मगर अपनी रोजमर्रा की चीज पेन को कहाँ ले जाएँ? बहुत से पेन ऐसे हैं जो किसी न किसी रूप में तुमसे जुड़े हैं. ऐसे पेन या तो तुमने लाकर दिए हैं अथवा जब भी हमने मँगवाए हैं तो उनके बारे में तुमसे चर्चा हुई है. कुछ पेन ऐसे भी हैं जो तुमको देने के बारे में सोच कर लिए गए. ऐसे ही सामानों के बीच आज हेडफोन सामने आ गया. वो पल अचानक से सामने प्रकट हो गया जबकि तुमने उसे अपने लिए माँगा था मगर हमने इंकार कर दिया था. इसके पीछे दो कारण थे, एक तो तुम्हारा रोज ही कई-कई किलोमीटर बाइक चलाना होता था ऐसे में लगा कि तुम यदि हेडफोन लगाकर बाइक चलाओगे तो दुर्घटना होने की आशंका है. इसके साथ-साथ एक बात ये भी थी कि तुम किसी भी सामान को बहुत ही बुरी स्थिति में उपयोग में लाते रहे हो, इससे डर था कि तुम वह हेडफोन जल्द ही ख़राब कर लोगे. इन दोनों स्थितियों के पीछे तुम्हारा ही स्वभाव था क्योंकि तुम समझाने पर कोई भी बात सामान्य रूप में सिर झटक कर भुला देते थे.


अब वे पेन, वो हेडफोन अकेले पड़े हैं और उनको देखकर तुम लगातार सामने नजर आ रहे हो.

पहली पुण्यतिथि पर तुम्हारे साथ

आज, दिनांक 16 जनवरी 2022 को उज्जैन में. रश्मि, टिंकू, पिंटू, विक्रम पहली पुण्यतिथि पर.