तुमको पंचतत्व में विलीन हुए आज पूरा एक महीना हो गया है मिंटू. पता नहीं हम लोग तुमको याद आते भी हैं या नहीं? तुम एक पल को भी हमारी यादों से, दिल-दिमाग से दूर न हो सके हो. अपने सामने, अपनी इन्हीं दोनों आँखों से तुमको देखा था पंचतत्त्व में विलीन होते, इसके बाद भी लगता है जैसे तुम आसपास ही हो. हर बार आहट होने पर ऐसा लगता है जैसे तुम अपनी चिर-परिचित शैली में सामने आ खड़े होगे. हर बार बस लगता ही है, तुम्हारा आना होता नहीं है.
आज तुमको याद करते हुए कुछ लोगों को भोजन करवाया है. सोच रखा है कि हर महीने की 16 तारीख को गरीब लोगों को भोजन करवाया करेंगे. हम लोगों के जीवन से ये सोलह तारीख बहुत गहराई से जुड़ गई है. इस तारीख को तुम्हारा जन्म हुआ, इसी तारीख को तुम पंचतत्त्व में समाहित हो गए और तुमको याद होगा, पिताजी ने इसी तारीख को अंतिम साँस ली थी. तुम तो इस समय पिताजी के पास पहुँच गए हो. हमें यही सुकून है कि तुम अकेले नहीं हो. यहाँ भी हम तुमको अकेले नहीं होने देंगे.
खुश रहो, जहाँ रहो. चलो अब सो जाओ, देर रात हो चुकी है.
तुम्हारा भाई जी.
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