क्या लिखें, क्या याद रखें, क्या भूलें कुछ भी अपने हाथ में नहीं, अपने वश में नहीं. चाहे भीड़ हो या फिर तन्हाई, घर में हों या फिर घर से बाहर, दिन हो या रात, सुबह हो या फिर शाम, जाग रहे हों या सो रहे हों तुम किसी भी एक पल के लिए स्मृतियों से ओझल नहीं हो सके हो. सबकुछ अपनी आँखों से देखने के बाद भी लगता है कि तुम अपनी शैतानियों के साथ प्रकट हो जाओगे. सड़कों पर टहलने के दौरान भी वे जगहें तुम्हारी उपस्थिति का झूठा आभास करवाती हैं जहाँ तुम कभी-कभी खड़े मिल जाते थे. घर का तो कोना-कोना तुम्हारी उपस्थिति की गवाही लगातार दे रहा है. इन सबके बाद भी तुम कहीं भी नहीं हो. मन को, दिल को समझाने की कितनी कठिन घड़ी है, इसे शायद तुम समझोगे नहीं.
तुम्हारी तरफ से ध्यान हटाने की
कोशिश में हर बार वही चीजें सामने आती हैं जिनको लेकर तुम्हारा सम्बन्ध रहा है.
तमाम सारे सामानों को एकबारगी भले ही छिपा दिया जाये मगर अपनी रोजमर्रा की चीज पेन
को कहाँ ले जाएँ? बहुत
से पेन ऐसे हैं जो किसी न किसी रूप में तुमसे जुड़े हैं. ऐसे पेन या तो तुमने लाकर
दिए हैं अथवा जब भी हमने मँगवाए हैं तो उनके बारे में तुमसे चर्चा हुई है. कुछ पेन
ऐसे भी हैं जो तुमको देने के बारे में सोच कर लिए गए. ऐसे ही सामानों के बीच आज
हेडफोन सामने आ गया. वो पल अचानक से सामने प्रकट हो गया जबकि तुमने उसे अपने लिए
माँगा था मगर हमने इंकार कर दिया था. इसके पीछे दो कारण थे,
एक तो तुम्हारा रोज ही कई-कई किलोमीटर बाइक चलाना होता था ऐसे में लगा कि तुम यदि
हेडफोन लगाकर बाइक चलाओगे तो दुर्घटना होने की आशंका है. इसके साथ-साथ एक बात ये
भी थी कि तुम किसी भी सामान को बहुत ही बुरी स्थिति में उपयोग में लाते रहे हो, इससे डर था कि तुम वह हेडफोन जल्द ही ख़राब कर लोगे. इन दोनों स्थितियों
के पीछे तुम्हारा ही स्वभाव था क्योंकि तुम समझाने पर कोई भी बात सामान्य रूप में
सिर झटक कर भुला देते थे.
अब वे पेन, वो हेडफोन अकेले पड़े हैं और उनको
देखकर तुम लगातार सामने नजर आ रहे हो.
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