हमारे घर के सरजू-बब्बन

 


ये हैं हमारे घर के सरजू-बब्बन...

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नहीं समझे न? समझने के लिए उरई के उस दौर में जाना होगा जबकि शहर में सरजू-बब्बन (दो युवक) उत्पात काटे थे।
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हमारे इन दोनों छोटे भाइयों की जुगलबंदी कब क्या गुल खिला दे, कहा नहीं जा सकता था। इनकी शरारतें ऐसी गजब की कि उनका सामना करने वाला भी मुस्कुरा उठे।

दोनों संग निकलें तो तीस-तीस दही-बड़े एक लोग डकार जाएँ। गोलगप्पे वाला खिलाते-खिलाते थक जाए पर ये दोनों न थकें। एक बार तो एक गोलगप्पे वाले ने बाकी सबको मना करके इन दोनों को ही सेवाएँ प्रदान की। अंत में पता चला कि एक-एक ने साठ-सत्तर गोलगप्पे गटक लिए।
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ऐसी सैकड़ों शरारतें हैं जिनके चलते घरभर इनको सरजू-बब्बन बुलाने लगा। ऐसी ही हरकतों के लिए कुछ लोगों ने राहु-केतू नामकरण भी कर रखा था।

जीते रहो हमारे सरजू-बब्बन
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