रुक गया वो पल और तुम भी


14 जनवरी को आना ही था, इसे न तो इस बार रोका जा सकता था और न ही पिछले साल रोका जा सका. समय को रोकना अपने हाथ में होता तो शायद समय आगे ही बढ़ पाता. कई बार समय का बढ़ना सुखद लगता है मगर बहुत बार समय का रुक जाने की कल्पना करना सुखद एहसास देता है. समय भले ही न रुकें मगर बहुत से पल होते हैं जो अपनी जगह रुके रह जाते हैं. समय के साथ सबकुछ आगे बढ़ता रहता है, बस वे पल ही आगे नहीं बढ़ते हैं. ऐसे ही बहुत सारे पलों में तुम भी शामिल हो गए हो. अब समय तो पिछले साल से यात्रा करते हुए आज की तारीख तक आ पहुँचा है मगर तुम अभी भी उसी पल के साथ रुके हुए हो. लाख कोशिशों के बाद भी तुमको उस पल से एक पल आगे न ला सके.


अब समय चल रहा है, हम सब चल रहे हैं, सबकुछ बढ़ रहा है, सबके साथ गति है बस तुम नहीं हो. तुम उसी एक पल के साथ रुक गए हो. हम अपने साथ तुमको लेकर चल तो रहे हैं मगर तुम न चल रहे हो. अब तुम्हारी यादें साथ चलती हैं, तुम्हारी बातें साथ चलती हैं, तुम्हारी शरारतें साथ चलती हैं. कितना कठिन हो जाता है तुम्हारे बिना एक कदम आगे बढ़ाना. दिल-दिमाग में सनसनाहट होती रहती है यही विचार करके कि चारों तरफ सबकुछ है बस तुम नहीं हो.


खैर, ये कौन सी इस एक दिन अकेले की कहानी है, ये कौन सा इसी एक जनवरी का हाल है, ऐसा पिछले साल भर से रोज हो रहा है, हर पल में हो रहा है. लोग कहते हैं कि समय हर तरह के घावों को भर देता है मगर हमें लगता है कि कुछ घाव समय के साथ भी नहीं भरते. ये एक दर्द है, एक घाव है जो आजीवन साथ रहेगा, ताउम्र साथ चलेगा. हर पल में दर्द देगा, हर बात पर आँसू लाएगा. इसके बाद भी जीवन इसी के साथ चलेगा, तुम्हारे बिना तुमको साथ लेकर चलेगा.


ढेरों आशीर्वाद, जहाँ रहो सुखी रहो, खुश रहो.

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