पिन पेट में खो जाना समस्या नहीं

आज कॉलेज में बैठे हुए चुटकुलों के सम्बन्ध में बातें चल रही थीं. उसी समय किसी ने कहा कि ये चुटकुले बन कैसे जाते हैं? इस पर सबके अपने-अपने तर्क आये. हमने भी अपनी बात रखी. हमारा कहना था कि चुटकुले व्यक्ति के जीवन से ही बनते-निकलते हैं. हम सभी रोजमर्रा में, अपने दैनिक जीवन में बहुत सी घटनाओं से दो-चार होते हैं, बहुत सी बातें करते हैं उन्हीं में से यदि गौर करें तो चुटकुले निकल आते हैं.


इस सम्बन्ध में मिंटू के बचपन की एक घटना उन सबको सुनाई. ऐसी एक-दो नहीं वरन ढेरों ऐसी घटनाएँ हैं, बातें हैं जो किसी भी रूप में चुटकुलों से कम नहीं.


पिंटू एक पिन को बार-बार अपने मुँह में डाल रहे थे. दाँतों में डालते, कभी इधर-उधर करते. उनको ऐसा करते देख किसी ने टोका कि ऐसा न करो. यदि पिन पेट में चली गई धोखे से तो दिक्कत हो जाएगी.

इससे पहले कि कोई कुछ बोलता, बताता तुम बोले कि कोई दिक्कत नहीं होगी. पिताजी के पास डिब्बा भर कर रखी हुई हैं पिन. दूसरी काम में आ जाएगी.


उस समय भी सब खूब हँसे थे और हम सब आज भी जब उस घटना को, उस बात को याद करते हैं तो हँस लेते हैं. उस समय मिंटू को इसका भान नहीं था कि यदि लोहे की पिन पेट में चली जाएगी तो क्या समस्या हो सकती है. उसके लिए तो बस पेट में पिन के जाने का मतलब पिन का खो जाना था. सो उसका समाधान मिंटू के बालमन ने कर दिया कि पिताजी के पास डिब्बा भर कर पिन रखी हुई हैं.


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